Selected

Original Text
Farooq Khan and Ahmed

Available Translations

8 Al-'Anfāl ٱلْأَنْفَال

< Previous   75 Āyah   The Spoils of War      Next >  

بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَٰنِ الرَّحِيمِ
In the name of Allah, Most Gracious, Most Merciful.

8:42 إِذْ أَنتُم بِٱلْعُدْوَةِ ٱلدُّنْيَا وَهُم بِٱلْعُدْوَةِ ٱلْقُصْوَىٰ وَٱلرَّكْبُ أَسْفَلَ مِنكُمْ ۚ وَلَوْ تَوَاعَدتُّمْ لَٱخْتَلَفْتُمْ فِى ٱلْمِيعَـٰدِ ۙ وَلَـٰكِن لِّيَقْضِىَ ٱللَّهُ أَمْرًا كَانَ مَفْعُولًا لِّيَهْلِكَ مَنْ هَلَكَ عَنۢ بَيِّنَةٍ وَيَحْيَىٰ مَنْ حَىَّ عَنۢ بَيِّنَةٍ ۗ وَإِنَّ ٱللَّهَ لَسَمِيعٌ عَلِيمٌ
8:42 याद करो जब तुम घाटी के निकटवर्ती छोर पर थे और वे घाटी के दूरस्थ छोर पर थे और क़ाफ़िला तुमसे नीचे की ओर था। यदि तुम परस्पर समय निश्चित किए होते तो अनिवार्यतः तुम निश्चित समय पर न पहुँचते। किन्तु जो कुछ हुआ वह इसलिए कि अल्लाह उस बात का फ़ैसला कर दे, जिसका पूरा होना निश्चित था, ताकि जिसे विनष्ट होना हो, वह स्पष्ट प्रमाण देखकर ही विनष्ट हो और जिसे जीवित रहना हो वह स्पष्ट़ प्रमाण देखकर जीवित रहे। निस्संदेह अल्लाह भली-भाँति जानता, सुनता है - Farooq Khan and Ahmed (Hindi)