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Suhel Khan and Saifur Nadwi

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9 At-Tawbah ٱلتَّوْبَة

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9:107 وَٱلَّذِينَ ٱتَّخَذُوا۟ مَسْجِدًا ضِرَارًا وَكُفْرًا وَتَفْرِيقًۢا بَيْنَ ٱلْمُؤْمِنِينَ وَإِرْصَادًا لِّمَنْ حَارَبَ ٱللَّهَ وَرَسُولَهُۥ مِن قَبْلُ ۚ وَلَيَحْلِفُنَّ إِنْ أَرَدْنَآ إِلَّا ٱلْحُسْنَىٰ ۖ وَٱللَّهُ يَشْهَدُ إِنَّهُمْ لَكَـٰذِبُونَ
9:107 और (वह लोग भी मुनाफिक़ हैं) जिन्होने (मुसलमानों के) नुकसान पहुंचाने और कुफ़्र करने वाले और मोमिनीन के दरमियान तफरक़ा (फूट) डालते और उस शख़्स की घात में बैठने के वास्ते मस्जिद बनाकर खड़ी की है जो ख़ुदा और उसके रसूल से पहले लड़ चुका है (और लुत्फ़ तो ये है कि) ज़रूर क़समें खाएगें कि हमने भलाई के सिवा कुछ और इरादा ही नहीं किया और ख़ुदा ख़ुद गवाही देता है - Suhel Khan and Saifur Nadwi (Hindi)