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Suhel Khan and Saifur Nadwi

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18 Al-Kahf ٱلْكَهْف

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بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَٰنِ الرَّحِيمِ
In the name of Allah, Most Gracious, Most Merciful.

18:1 ٱلْحَمْدُ لِلَّهِ ٱلَّذِىٓ أَنزَلَ عَلَىٰ عَبْدِهِ ٱلْكِتَـٰبَ وَلَمْ يَجْعَل لَّهُۥ عِوَجَا ۜ
18:1 हर तरह की तारीफ ख़ुदा ही को (सज़ावार) है जिसने अपने बन्दे (मोहम्मद) पर किताब (क़ुरान) नाज़िल की और उसमें किसी तरह की कज़ी (ख़राबी) न रखी - Suhel Khan and Saifur Nadwi (Hindi)

18:2 قَيِّمًا لِّيُنذِرَ بَأْسًا شَدِيدًا مِّن لَّدُنْهُ وَيُبَشِّرَ ٱلْمُؤْمِنِينَ ٱلَّذِينَ يَعْمَلُونَ ٱلصَّـٰلِحَـٰتِ أَنَّ لَهُمْ أَجْرًا حَسَنًا
18:2 बल्कि हर तरह से सधा ताकि जो सख्त अज़ाब ख़ुदा की बारगाह से काफिरों पर नाज़िल होने वाला है उससे लोगों को डराए और जिन मोमिनीन ने अच्छे अच्छे काम किए हैं उनको इस बात की खुशख़बरी दे की उनके लिए बहुत अच्छा अज्र (व सवाब) मौजूद है - Suhel Khan and Saifur Nadwi (Hindi)

18:3 مَّـٰكِثِينَ فِيهِ أَبَدًا
18:3 जिसमें वह हमेशा (बाइत्मेनान) तमाम रहेगें - Suhel Khan and Saifur Nadwi (Hindi)

18:4 وَيُنذِرَ ٱلَّذِينَ قَالُوا۟ ٱتَّخَذَ ٱللَّهُ وَلَدًا
18:4 और जो लोग इसके क़ाएल हैं कि ख़ुदा औलाद रखता है उनको (अज़ाब से) डराओ - Suhel Khan and Saifur Nadwi (Hindi)

18:5 مَّا لَهُم بِهِۦ مِنْ عِلْمٍ وَلَا لِـَٔابَآئِهِمْ ۚ كَبُرَتْ كَلِمَةً تَخْرُجُ مِنْ أَفْوَٰهِهِمْ ۚ إِن يَقُولُونَ إِلَّا كَذِبًا
18:5 न तो उन्हीं को उसकी कुछ खबर है और न उनके बाप दादाओं ही को थी (ये) बड़ी सख्त बात है जो उनके मुँह से निकलती है ये लोग झूठ मूठ के सिवा (कुछ और) बोलते ही नहीं - Suhel Khan and Saifur Nadwi (Hindi)

18:6 فَلَعَلَّكَ بَـٰخِعٌ نَّفْسَكَ عَلَىٰٓ ءَاثَـٰرِهِمْ إِن لَّمْ يُؤْمِنُوا۟ بِهَـٰذَا ٱلْحَدِيثِ أَسَفًا
18:6 तो (ऐ रसूल) अगर ये लोग इस बात को न माने तो यायद तुम मारे अफसोस के उनके पीछे अपनी जान दे डालोगे - Suhel Khan and Saifur Nadwi (Hindi)

18:7 إِنَّا جَعَلْنَا مَا عَلَى ٱلْأَرْضِ زِينَةً لَّهَا لِنَبْلُوَهُمْ أَيُّهُمْ أَحْسَنُ عَمَلًا
18:7 और जो कुछ रुए ज़मीन पर है हमने उसकी ज़ीनत (रौनक़) क़रार दी ताकि हम लोगों का इम्तिहान लें कि उनमें से कौन सबसे अच्छा चलन का है - Suhel Khan and Saifur Nadwi (Hindi)

18:8 وَإِنَّا لَجَـٰعِلُونَ مَا عَلَيْهَا صَعِيدًا جُرُزًا
18:8 और (फिर) हम एक न एक दिन जो कुछ भी इस पर है (सबको मिटा करके) चटियल मैदान बना देगें - Suhel Khan and Saifur Nadwi (Hindi)

18:9 أَمْ حَسِبْتَ أَنَّ أَصْحَـٰبَ ٱلْكَهْفِ وَٱلرَّقِيمِ كَانُوا۟ مِنْ ءَايَـٰتِنَا عَجَبًا
18:9 (ऐ रसूल) क्या तुम ये ख्याल करते हो कि असहाब कहफ व रक़ीम (खोह) और (तख्ती वाले) हमारी (क़ुदरत की) निशानियों में से एक अजीब (निशानी) थे - Suhel Khan and Saifur Nadwi (Hindi)

18:10 إِذْ أَوَى ٱلْفِتْيَةُ إِلَى ٱلْكَهْفِ فَقَالُوا۟ رَبَّنَآ ءَاتِنَا مِن لَّدُنكَ رَحْمَةً وَهَيِّئْ لَنَا مِنْ أَمْرِنَا رَشَدًا
18:10 कि एक बारगी कुछ जवान ग़ार में आ पहुँचे और दुआ की-ऐ हमारे परवरदिगार हमें अपनी बारगाह से रहमत अता फरमा-और हमारे वास्ते हमारे काम में कामयाबी इनायत कर - Suhel Khan and Saifur Nadwi (Hindi)

18:11 فَضَرَبْنَا عَلَىٰٓ ءَاذَانِهِمْ فِى ٱلْكَهْفِ سِنِينَ عَدَدًا
18:11 तब हमने कई बरस तक ग़ार में उनके कानों पर पर्दे डाल दिए (उन्हें सुला दिया) - Suhel Khan and Saifur Nadwi (Hindi)

18:12 ثُمَّ بَعَثْنَـٰهُمْ لِنَعْلَمَ أَىُّ ٱلْحِزْبَيْنِ أَحْصَىٰ لِمَا لَبِثُوٓا۟ أَمَدًا
18:12 फिर हमने उन्हें चौकाया ताकि हम देखें कि दो गिरोहों में से किसी को (ग़ार में) ठहरने की मुद्दत खूब याद है - Suhel Khan and Saifur Nadwi (Hindi)

18:13 نَّحْنُ نَقُصُّ عَلَيْكَ نَبَأَهُم بِٱلْحَقِّ ۚ إِنَّهُمْ فِتْيَةٌ ءَامَنُوا۟ بِرَبِّهِمْ وَزِدْنَـٰهُمْ هُدًى
18:13 (ऐ रसूल) अब हम उनका हाल तुमसे बिल्कुल ठीक तहक़ीक़ातन (यक़ीन के साथ) बयान करते हैं वह चन्द जवान थे कि अपने (सच्चे) परवरदिगार पर ईमान लाए थे और हम ने उनकी सोच समझ और ज्यादा कर दी है - Suhel Khan and Saifur Nadwi (Hindi)

18:14 وَرَبَطْنَا عَلَىٰ قُلُوبِهِمْ إِذْ قَامُوا۟ فَقَالُوا۟ رَبُّنَا رَبُّ ٱلسَّمَـٰوَٰتِ وَٱلْأَرْضِ لَن نَّدْعُوَا۟ مِن دُونِهِۦٓ إِلَـٰهًا ۖ لَّقَدْ قُلْنَآ إِذًا شَطَطًا
18:14 और हमने उनकी दिलों पर (सब्र व इस्तेक़लाल की) गिराह लगा दी (कि जब दक़ियानूस बादशाह ने कुफ्र पर मजबूर किया) तो उठ खड़े हुए (और बे ताम्मुल (खटके)) कहने लगे हमारा परवरदिगार तो बस सारे आसमान व ज़मीन का मालिक है हम तो उसके सिवा किसी माबूद की हरगिज़ इबादत न करेगें - Suhel Khan and Saifur Nadwi (Hindi)

18:15 هَـٰٓؤُلَآءِ قَوْمُنَا ٱتَّخَذُوا۟ مِن دُونِهِۦٓ ءَالِهَةً ۖ لَّوْلَا يَأْتُونَ عَلَيْهِم بِسُلْطَـٰنٍۭ بَيِّنٍ ۖ فَمَنْ أَظْلَمُ مِمَّنِ ٱفْتَرَىٰ عَلَى ٱللَّهِ كَذِبًا
18:15 अगर हम ऐसा करे तो यक़ीनन हमने अक़ल से दूर की बात कही (अफसोस एक) ये हमारी क़ौम के लोग हैं कि जिन्होनें ख़ुदा को छोड़कर (दूसरे) माबूद बनाए हैं (फिर) ये लोग उनके (माबूद होने) की कोई सरीही (खुली) दलील क्यों नहीं पेश करते और जो शख़्श ख़ुदा पर झूट बोहतान बाँधे उससे ज्यादा ज़ालिम और कौन होगा - Suhel Khan and Saifur Nadwi (Hindi)

18:16 وَإِذِ ٱعْتَزَلْتُمُوهُمْ وَمَا يَعْبُدُونَ إِلَّا ٱللَّهَ فَأْوُۥٓا۟ إِلَى ٱلْكَهْفِ يَنشُرْ لَكُمْ رَبُّكُم مِّن رَّحْمَتِهِۦ وَيُهَيِّئْ لَكُم مِّنْ أَمْرِكُم مِّرْفَقًا
18:16 (फिर बाहम कहने लगे कि) जब तुमने उन लोगों से और ख़ुदा के सिवा जिन माबूदों की ये लोग परसतिश करते हैं उनसे किनारा कशी करली तो चलो (फलॉ) ग़ार में जा बैठो और तुम्हारा परवरदिगार अपनी रहमत तुम पर वसीह कर देगा और तुम्हारा काम में तुम्हारे लिए आसानी के सामान मुहय्या करेगा - Suhel Khan and Saifur Nadwi (Hindi)

18:17 ۞ وَتَرَى ٱلشَّمْسَ إِذَا طَلَعَت تَّزَٰوَرُ عَن كَهْفِهِمْ ذَاتَ ٱلْيَمِينِ وَإِذَا غَرَبَت تَّقْرِضُهُمْ ذَاتَ ٱلشِّمَالِ وَهُمْ فِى فَجْوَةٍ مِّنْهُ ۚ ذَٰلِكَ مِنْ ءَايَـٰتِ ٱللَّهِ ۗ مَن يَهْدِ ٱللَّهُ فَهُوَ ٱلْمُهْتَدِ ۖ وَمَن يُضْلِلْ فَلَن تَجِدَ لَهُۥ وَلِيًّا مُّرْشِدًا
18:17 (ग़रज़ ये ठान कर ग़ार में जा पहुँचे) कि जब सूरज निकलता है तो देखेगा कि वह उनके ग़ार से दाहिनी तरफ झुक कर निकलता है और जब ग़ुरुब (डुबता) होता है तो उनसे बायीं तरफ कतरा जाता है और वह लोग (मजे से) ग़ार के अन्दर एक वसीइ (बड़ी) जगह में (लेटे) हैं ये ख़ुदा (की कुदरत) की निशानियों में से (एक निशानी) है जिसको हिदायत करे वही हिदायत याफ्ता है और जिस को गुमराह करे तो फिर उसका कोई सरपरस्त रहनुमा हरगिज़ न पाओगे - Suhel Khan and Saifur Nadwi (Hindi)

18:18 وَتَحْسَبُهُمْ أَيْقَاظًا وَهُمْ رُقُودٌ ۚ وَنُقَلِّبُهُمْ ذَاتَ ٱلْيَمِينِ وَذَاتَ ٱلشِّمَالِ ۖ وَكَلْبُهُم بَـٰسِطٌ ذِرَاعَيْهِ بِٱلْوَصِيدِ ۚ لَوِ ٱطَّلَعْتَ عَلَيْهِمْ لَوَلَّيْتَ مِنْهُمْ فِرَارًا وَلَمُلِئْتَ مِنْهُمْ رُعْبًا
18:18 तू उनको समझेगा कि वह जागते हैं हालॉकि वह (गहरी नींद में) सो रहे हैं और हम कभी दाहिनी तरफ और कभी बायीं तरफ उनकी करवट बदलवा देते हैं और उनका कुत्ताा अपने आगे के दोनो पाँव फैलाए चौखट पर डटा बैठा है (उनकी ये हालत है कि) अगर कहीं तू उनको झाक कर देखे तो उलटे पाँव ज़रुर भाग खड़े हो और तेरे दिल में दहशत समा जाए - Suhel Khan and Saifur Nadwi (Hindi)

18:19 وَكَذَٰلِكَ بَعَثْنَـٰهُمْ لِيَتَسَآءَلُوا۟ بَيْنَهُمْ ۚ قَالَ قَآئِلٌ مِّنْهُمْ كَمْ لَبِثْتُمْ ۖ قَالُوا۟ لَبِثْنَا يَوْمًا أَوْ بَعْضَ يَوْمٍ ۚ قَالُوا۟ رَبُّكُمْ أَعْلَمُ بِمَا لَبِثْتُمْ فَٱبْعَثُوٓا۟ أَحَدَكُم بِوَرِقِكُمْ هَـٰذِهِۦٓ إِلَى ٱلْمَدِينَةِ فَلْيَنظُرْ أَيُّهَآ أَزْكَىٰ طَعَامًا فَلْيَأْتِكُم بِرِزْقٍ مِّنْهُ وَلْيَتَلَطَّفْ وَلَا يُشْعِرَنَّ بِكُمْ أَحَدًا
18:19 और (जिस तरह अपनी कुदरत से उनको सुलाया) उसी तरह (अपनी कुदरत से) उनको (जगा) उठाया ताकि आपस में कुछ पूछ गछ करें (ग़रज़) उनमें एक बोलने वाला बोल उठा कि (भई आख़िर इस ग़ार में) तुम कितनी मुद्दत ठहरे कहने लगे (अरे ठहरे क्या बस) एक दिन से भी कम उसके बाद कहने लगे कि जितनी देर तुम ग़ार में ठहरे उसको तुम्हारे परवरदिगार ही (कुछ तुम से) बेहतर जानता है (अच्छा) तो अब अपने में से किसी को अपना ये रुपया देकर शहर की तरफ भेजो तो वह (जाकर) देखभाल ले कि वहाँ कौन सा खाना बहुत अच्छा है फिर उसमें से (ज़रुरत भर) खाना तुम्हारे वास्ते ले आए और उसे चाहिए कि वह आहिस्ता चुपके से आ जाए और किसी को तुम्हारी ख़बर न होने दे - Suhel Khan and Saifur Nadwi (Hindi)

18:20 إِنَّهُمْ إِن يَظْهَرُوا۟ عَلَيْكُمْ يَرْجُمُوكُمْ أَوْ يُعِيدُوكُمْ فِى مِلَّتِهِمْ وَلَن تُفْلِحُوٓا۟ إِذًا أَبَدًا
18:20 इसमें शक़ नहीं कि अगर उन लोगों को तुम्हारी इत्तेलाअ हो गई तो बस फिर तुम को संगसार ही कर देंगें या फिर तुम को अपने दीन की तरफ फेर कर ले जाएँगे और अगर ऐसा हुआ तो फिर तुम कभी कामयाब न होगे - Suhel Khan and Saifur Nadwi (Hindi)

18:21 وَكَذَٰلِكَ أَعْثَرْنَا عَلَيْهِمْ لِيَعْلَمُوٓا۟ أَنَّ وَعْدَ ٱللَّهِ حَقٌّ وَأَنَّ ٱلسَّاعَةَ لَا رَيْبَ فِيهَآ إِذْ يَتَنَـٰزَعُونَ بَيْنَهُمْ أَمْرَهُمْ ۖ فَقَالُوا۟ ٱبْنُوا۟ عَلَيْهِم بُنْيَـٰنًا ۖ رَّبُّهُمْ أَعْلَمُ بِهِمْ ۚ قَالَ ٱلَّذِينَ غَلَبُوا۟ عَلَىٰٓ أَمْرِهِمْ لَنَتَّخِذَنَّ عَلَيْهِم مَّسْجِدًا
18:21 और हमने यूँ उनकी क़ौम के लोगों को उनकी हालत पर इत्तेलाअ (ख़बर) कराई ताकि वह लोग देख लें कि ख़ुदा को वायदा यक़ीनन सच्चा है और ये (भी समझ लें) कि क़यामत (के आने) में कुछ भी शुबहा नहीं अब (इत्तिलाआ होने के बाद) उनके बारे में लोग बाहम झगड़ने लगे तो कुछ लोगों ने कहा कि उनके (ग़ार) पर (बतौर यादगार) कोई इमारत बना दो उनका परवरदिगार तो उनके हाल से खूब वाक़िफ है ही और उनके बारे में जिन (मोमिनीन) की राए ग़ालिब रही उन्होंने कहा कि हम तो उन (के ग़ार) पर एक मस्जिद बनाएँगें - Suhel Khan and Saifur Nadwi (Hindi)

18:22 سَيَقُولُونَ ثَلَـٰثَةٌ رَّابِعُهُمْ كَلْبُهُمْ وَيَقُولُونَ خَمْسَةٌ سَادِسُهُمْ كَلْبُهُمْ رَجْمًۢا بِٱلْغَيْبِ ۖ وَيَقُولُونَ سَبْعَةٌ وَثَامِنُهُمْ كَلْبُهُمْ ۚ قُل رَّبِّىٓ أَعْلَمُ بِعِدَّتِهِم مَّا يَعْلَمُهُمْ إِلَّا قَلِيلٌ ۗ فَلَا تُمَارِ فِيهِمْ إِلَّا مِرَآءً ظَـٰهِرًا وَلَا تَسْتَفْتِ فِيهِم مِّنْهُمْ أَحَدًا
18:22 क़रीब है कि लोग (नुसैरे नज़रान) कहेगें कि वह तीन आदमी थे चौथा उनका कुत्ताा (क़तमीर) है और कुछ लोग (आक़िब वग़ैरह) कहते हैं कि वह पाँच आदमी थे छठा उनका कुत्ताा है (ये सब) ग़ैब में अटकल लगाते हैं और कुछ लोग कहते हैं कि सात आदमी हैं और आठवाँ उनका कुत्ताा है (ऐ रसूल) तुम कह दो की उनका सुमार मेरा परवरदिगार ही ख़ब जानता है उन (की गिनती) के थोडे ही लोग जानते हैं तो (ऐ रसूल) तुम (उन लोगों से) असहाब कहफ के बारे में सरसरी गुफ्तगू के सिवा (ज्यादा) न झगड़ों और उनके बारे में उन लोगों से किसी से कुछ पूछ गछ नहीं - Suhel Khan and Saifur Nadwi (Hindi)

18:23 وَلَا تَقُولَنَّ لِشَا۟ىْءٍ إِنِّى فَاعِلٌ ذَٰلِكَ غَدًا
18:23 और किसी काम की निस्बत न कहा करो कि मै इसको कल करुँगा - Suhel Khan and Saifur Nadwi (Hindi)

18:24 إِلَّآ أَن يَشَآءَ ٱللَّهُ ۚ وَٱذْكُر رَّبَّكَ إِذَا نَسِيتَ وَقُلْ عَسَىٰٓ أَن يَهْدِيَنِ رَبِّى لِأَقْرَبَ مِنْ هَـٰذَا رَشَدًا
18:24 मगर इन्शा अल्लाह कह कर और अगर (इन्शा अल्लाह कहना) भूल जाओ तो (जब याद आए) अपने परवरदिगार को याद कर लो (इन्शा अल्लाह कह लो) और कहो कि उम्मीद है कि मेरा परवरदिगार मुझे ऐसी बात की हिदायत फरमाए जो रहनुमाई में उससे भी ज्यादा क़रीब हो - Suhel Khan and Saifur Nadwi (Hindi)

18:25 وَلَبِثُوا۟ فِى كَهْفِهِمْ ثَلَـٰثَ مِا۟ئَةٍ سِنِينَ وَٱزْدَادُوا۟ تِسْعًا
18:25 और असहाब कहफ अपने ग़ार में नौ ऊपर तीन सौ बरस रहे - Suhel Khan and Saifur Nadwi (Hindi)

18:26 قُلِ ٱللَّهُ أَعْلَمُ بِمَا لَبِثُوا۟ ۖ لَهُۥ غَيْبُ ٱلسَّمَـٰوَٰتِ وَٱلْأَرْضِ ۖ أَبْصِرْ بِهِۦ وَأَسْمِعْ ۚ مَا لَهُم مِّن دُونِهِۦ مِن وَلِىٍّ وَلَا يُشْرِكُ فِى حُكْمِهِۦٓ أَحَدًا
18:26 (ऐ रसूल) अगर वह लोग इस पर भी न मानें तो तुम कह दो कि ख़ुदा उनके ठहरने की मुद्दत से बखूबी वाक़िफ है सारे आसमान और ज़मीन का ग़ैब उसी के वास्ते ख़ास है (अल्लाह हो अकबर) वो कैसा देखने वाला क्या ही सुनने वाला है उसके सिवा उन लोगों का कोई सरपरस्त नहीं और वह अपने हुक्म में किसी को अपना दख़ील (शरीक) नहीं बनाता - Suhel Khan and Saifur Nadwi (Hindi)

18:27 وَٱتْلُ مَآ أُوحِىَ إِلَيْكَ مِن كِتَابِ رَبِّكَ ۖ لَا مُبَدِّلَ لِكَلِمَـٰتِهِۦ وَلَن تَجِدَ مِن دُونِهِۦ مُلْتَحَدًا
18:27 और (ऐ रसूल) जो किताब तुम्हारे परवरदिगार की तरफ से वही के ज़रिए से नाज़िल हुईहै उसको पढ़ा करो उसकी बातों को कोई बदल नहीं सकता और तुम उसके सिवा कहीं कोई हरगिज़ पनाह की जगह (भी) न पाओगे - Suhel Khan and Saifur Nadwi (Hindi)

18:28 وَٱصْبِرْ نَفْسَكَ مَعَ ٱلَّذِينَ يَدْعُونَ رَبَّهُم بِٱلْغَدَوٰةِ وَٱلْعَشِىِّ يُرِيدُونَ وَجْهَهُۥ ۖ وَلَا تَعْدُ عَيْنَاكَ عَنْهُمْ تُرِيدُ زِينَةَ ٱلْحَيَوٰةِ ٱلدُّنْيَا ۖ وَلَا تُطِعْ مَنْ أَغْفَلْنَا قَلْبَهُۥ عَن ذِكْرِنَا وَٱتَّبَعَ هَوَىٰهُ وَكَانَ أَمْرُهُۥ فُرُطًا
18:28 और (ऐ रसूल) जो लोग अपने परवरदिगार को सुबह सवेरे और झटपट वक्त शाम को याद करते हैं और उसकी खुशनूदी के ख्वाहाँ हैं उनके उनके साथ तुम खुद (भी) अपने नफस पर जब्र करो और उनकी तरफ से अपनी नज़र (तवज्जो) न फेरो कि तुम दुनिया में ज़िन्दगी की आराइश चाहने लगो और जिसके दिल को हमने (गोया खुद) अपने ज़िक्र से ग़ाफिल कर दिया है और वह अपनी ख्वाहिशे नफसानी के पीछे पड़ा है और उसका काम सरासर ज्यादती है उसका कहना हरगिज़ न मानना - Suhel Khan and Saifur Nadwi (Hindi)

18:29 وَقُلِ ٱلْحَقُّ مِن رَّبِّكُمْ ۖ فَمَن شَآءَ فَلْيُؤْمِن وَمَن شَآءَ فَلْيَكْفُرْ ۚ إِنَّآ أَعْتَدْنَا لِلظَّـٰلِمِينَ نَارًا أَحَاطَ بِهِمْ سُرَادِقُهَا ۚ وَإِن يَسْتَغِيثُوا۟ يُغَاثُوا۟ بِمَآءٍ كَٱلْمُهْلِ يَشْوِى ٱلْوُجُوهَ ۚ بِئْسَ ٱلشَّرَابُ وَسَآءَتْ مُرْتَفَقًا
18:29 और (ऐ रसूल) तुम कह दों कि सच्ची बात (कलमए तौहीद) तुम्हारे परवरदिगार की तरफ से (नाज़िल हो चुकी है) बस जो चाहे माने और जो चाहे न माने (मगर) हमने ज़ालिमों के लिए वह आग (दहका के) तैयार कर रखी है जिसकी क़नातें उन्हें घेर लेगी और अगर वह लोग दोहाई करेगें तो उनकी फरियाद रसी खौलते हुए पानी से की जाएगी जो मसलन पिघले हुए ताबें की तरह होगा (और) वह मुँह को भून डालेगा क्या बुरा पानी है और (जहन्नुम भी) क्या बुरी जगह है - Suhel Khan and Saifur Nadwi (Hindi)

18:30 إِنَّ ٱلَّذِينَ ءَامَنُوا۟ وَعَمِلُوا۟ ٱلصَّـٰلِحَـٰتِ إِنَّا لَا نُضِيعُ أَجْرَ مَنْ أَحْسَنَ عَمَلًا
18:30 इसमें शक़ नहीं कि जिन लोगों ने ईमान कुबूल किया और अच्छे अच्छे काम करते रहे तो हम हरगिज़ अच्छे काम वालो के अज्र को अकारत नहीं करते - Suhel Khan and Saifur Nadwi (Hindi)

18:31 أُو۟لَـٰٓئِكَ لَهُمْ جَنَّـٰتُ عَدْنٍ تَجْرِى مِن تَحْتِهِمُ ٱلْأَنْهَـٰرُ يُحَلَّوْنَ فِيهَا مِنْ أَسَاوِرَ مِن ذَهَبٍ وَيَلْبَسُونَ ثِيَابًا خُضْرًا مِّن سُندُسٍ وَإِسْتَبْرَقٍ مُّتَّكِـِٔينَ فِيهَا عَلَى ٱلْأَرَآئِكِ ۚ نِعْمَ ٱلثَّوَابُ وَحَسُنَتْ مُرْتَفَقًا
18:31 ये वही लोग हैं जिनके (रहने सहने के) लिए सदाबहार (बेहश्त के) बाग़ात हैं उनके (मकानात के) नीचे नहरें जारी होगीं वह उन बाग़ात में दमकते हुए कुन्दन के कंगन से सँवारे जाँएगें और उन्हें बारीक रेशम (क्रेब) और दबीज़ रेश्म (वाफते)के धानी जोड़े पहनाए जाएँगें और तख्तों पर तकिए लगाए (बैठे) होगें क्या ही अच्छा बदला है और (बेहश्त भी आसाइश की) कैसी अच्छी जगह है - Suhel Khan and Saifur Nadwi (Hindi)

18:32 ۞ وَٱضْرِبْ لَهُم مَّثَلًا رَّجُلَيْنِ جَعَلْنَا لِأَحَدِهِمَا جَنَّتَيْنِ مِنْ أَعْنَـٰبٍ وَحَفَفْنَـٰهُمَا بِنَخْلٍ وَجَعَلْنَا بَيْنَهُمَا زَرْعًا
18:32 और (ऐ रसूल) इन लोगों से उन दो शख़्शों की मिसाल बयान करो कि उनमें से एक को हमने अंगूर के दो बाग़ दे रखे है और हमने चारो ओर खजूर के पेड़ लगा दिये है और उन दोनों बाग़ के दरमियान खेती भी लगाई है - Suhel Khan and Saifur Nadwi (Hindi)

18:33 كِلْتَا ٱلْجَنَّتَيْنِ ءَاتَتْ أُكُلَهَا وَلَمْ تَظْلِم مِّنْهُ شَيْـًٔا ۚ وَفَجَّرْنَا خِلَـٰلَهُمَا نَهَرًا
18:33 वह दोनों बाग़ खूब फल लाए और फल लाने में कुछ कमी नहीं की और हमने उन दोनों बाग़ों के दरमियान नहर भी जारी कर दी है - Suhel Khan and Saifur Nadwi (Hindi)

18:34 وَكَانَ لَهُۥ ثَمَرٌ فَقَالَ لِصَـٰحِبِهِۦ وَهُوَ يُحَاوِرُهُۥٓ أَنَا۠ أَكْثَرُ مِنكَ مَالًا وَأَعَزُّ نَفَرًا
18:34 और उसे फल मिला तो अपने साथी से जो उससे बातें कर रहा था बोल उठा कि मै तो तुझसे माल में (भी) ज्यादा हूँ और जत्थे में भी बढ़ कर हूँ - Suhel Khan and Saifur Nadwi (Hindi)

18:35 وَدَخَلَ جَنَّتَهُۥ وَهُوَ ظَالِمٌ لِّنَفْسِهِۦ قَالَ مَآ أَظُنُّ أَن تَبِيدَ هَـٰذِهِۦٓ أَبَدًا
18:35 और ये बातें करता हुआ अपने बाग़ मे भी जा पहुँचा हालॉकि उसकी आदत ये थी कि (कुफ्र की वजह से) अपने ऊपर आप ज़ुल्म कर रहा था (ग़रज़ वह कह बैठा) कि मुझे तो इसका गुमान नहीं तो कि कभी भी ये बाग़ उजड़ जाए - Suhel Khan and Saifur Nadwi (Hindi)

18:36 وَمَآ أَظُنُّ ٱلسَّاعَةَ قَآئِمَةً وَلَئِن رُّدِدتُّ إِلَىٰ رَبِّى لَأَجِدَنَّ خَيْرًا مِّنْهَا مُنقَلَبًا
18:36 और मै तो ये भी नहीं ख्याल करता कि क़यामत क़ायम होगी और (बिलग़रज़ हुई भी तो) जब मै अपने परवरदिगार की तरफ लौटाया जाऊँगा तो यक़ीनन इससे कहीं अच्छी जगह पाऊँगा - Suhel Khan and Saifur Nadwi (Hindi)

18:37 قَالَ لَهُۥ صَاحِبُهُۥ وَهُوَ يُحَاوِرُهُۥٓ أَكَفَرْتَ بِٱلَّذِى خَلَقَكَ مِن تُرَابٍ ثُمَّ مِن نُّطْفَةٍ ثُمَّ سَوَّىٰكَ رَجُلًا
18:37 उसका साथी जो उससे बातें कर रहा था कहने लगा कि क्या तू उस परवरदिगार का मुन्किर है जिसने (पहले) तुझे मिट्टी से पैदा किया फिर नुत्फे से फिर तुझे बिल्कुल ठीक मर्द (आदमी) बना दिया - Suhel Khan and Saifur Nadwi (Hindi)

18:38 لَّـٰكِنَّا۠ هُوَ ٱللَّهُ رَبِّى وَلَآ أُشْرِكُ بِرَبِّىٓ أَحَدًا
18:38 हम तो (कहते हैं कि) वही ख़ुदा मेरा परवरदिगार है और मै तो अपने परवरदिगार का किसी को शरीक नहीं बनाता - Suhel Khan and Saifur Nadwi (Hindi)

18:39 وَلَوْلَآ إِذْ دَخَلْتَ جَنَّتَكَ قُلْتَ مَا شَآءَ ٱللَّهُ لَا قُوَّةَ إِلَّا بِٱللَّهِ ۚ إِن تَرَنِ أَنَا۠ أَقَلَّ مِنكَ مَالًا وَوَلَدًا
18:39 और जब तू अपने बाग़ में आया तो (ये) क्यों न कहा कि ये सब (माशा अल्लाह ख़ुदा ही के चाहने से हुआ है (मेरा कुछ भी नहीं क्योंकि) बग़ैर ख़ुदा की (मदद) के (किसी में) कुछ सकत नहीं अगर माल और औलाद की राह से तू मुझे कम समझता है - Suhel Khan and Saifur Nadwi (Hindi)

18:40 فَعَسَىٰ رَبِّىٓ أَن يُؤْتِيَنِ خَيْرًا مِّن جَنَّتِكَ وَيُرْسِلَ عَلَيْهَا حُسْبَانًا مِّنَ ٱلسَّمَآءِ فَتُصْبِحَ صَعِيدًا زَلَقًا
18:40 तो अनक़ीरब ही मेरा परवरदिगार मुझे वह बाग़ अता फरमाएगा जो तेरे बाग़ से कहीं बेहतर होगा और तेरे बाग़ पर कोई ऐसी आफत आसमान से नाज़िल करे कि (ख़ाक सियाह) होकर चटियल चिकना सफ़ाचट मैदान हो जाए - Suhel Khan and Saifur Nadwi (Hindi)

18:41 أَوْ يُصْبِحَ مَآؤُهَا غَوْرًا فَلَن تَسْتَطِيعَ لَهُۥ طَلَبًا
18:41 उसका पानी नीचे उतर (के खुश्क) हो जाए फिर तो उसको किसी तरह तलब न कर सके - Suhel Khan and Saifur Nadwi (Hindi)

18:42 وَأُحِيطَ بِثَمَرِهِۦ فَأَصْبَحَ يُقَلِّبُ كَفَّيْهِ عَلَىٰ مَآ أَنفَقَ فِيهَا وَهِىَ خَاوِيَةٌ عَلَىٰ عُرُوشِهَا وَيَقُولُ يَـٰلَيْتَنِى لَمْ أُشْرِكْ بِرَبِّىٓ أَحَدًا
18:42 (चुनान्चे अज़ाब नाज़िल हुआ) और उसके (बाग़ के) फल (आफत में) घेर लिए गए तो उस माल पर जो बाग़ की तैयारी में सर्फ (ख़र्च) किया था (अफसोस से) हाथ मलने लगा और बाग़ की ये हालत थी कि अपनी टहनियों पर औंधा गिरा हुआ पड़ा था तो कहने लगा काश मै अपने परवरदिगार का किसी को शरीक न बनाता - Suhel Khan and Saifur Nadwi (Hindi)

18:43 وَلَمْ تَكُن لَّهُۥ فِئَةٌ يَنصُرُونَهُۥ مِن دُونِ ٱللَّهِ وَمَا كَانَ مُنتَصِرًا
18:43 और ख़ुदा के सिवा उसका कोई जत्था भी न था कि उसकी मदद करता और न वह बदला ले सकता था इसी जगह से (साबित हो गया - Suhel Khan and Saifur Nadwi (Hindi)

18:44 هُنَالِكَ ٱلْوَلَـٰيَةُ لِلَّهِ ٱلْحَقِّ ۚ هُوَ خَيْرٌ ثَوَابًا وَخَيْرٌ عُقْبًا
18:44 कि सरपरस्ती ख़ास ख़ुदा ही के लिए है जो सच्चा है वही बेहतर सवाब (देने) वाला है और अन्जाम के जंगल से भी वही बेहतर है - Suhel Khan and Saifur Nadwi (Hindi)

18:45 وَٱضْرِبْ لَهُم مَّثَلَ ٱلْحَيَوٰةِ ٱلدُّنْيَا كَمَآءٍ أَنزَلْنَـٰهُ مِنَ ٱلسَّمَآءِ فَٱخْتَلَطَ بِهِۦ نَبَاتُ ٱلْأَرْضِ فَأَصْبَحَ هَشِيمًا تَذْرُوهُ ٱلرِّيَـٰحُ ۗ وَكَانَ ٱللَّهُ عَلَىٰ كُلِّ شَىْءٍ مُّقْتَدِرًا
18:45 और (ऐ रसूल) इनसे दुनिया की ज़िन्दगी की मसल भी बयान कर दो कि उसके हालत पानी की सी है जिसे हमने आसमान से बरसाया तो ज़मीन की उगाने की ताक़त उसमें मिल गई और (खूब फली फूली) फिर आख़िर रेज़ा रेज़ा (भूसा) हो गई कि उसको हवाएँ उड़ाए फिरती है और ख़ुदा हर चीज़ पर क़ादिर है - Suhel Khan and Saifur Nadwi (Hindi)

18:46 ٱلْمَالُ وَٱلْبَنُونَ زِينَةُ ٱلْحَيَوٰةِ ٱلدُّنْيَا ۖ وَٱلْبَـٰقِيَـٰتُ ٱلصَّـٰلِحَـٰتُ خَيْرٌ عِندَ رَبِّكَ ثَوَابًا وَخَيْرٌ أَمَلًا
18:46 (ऐ रसूल) माल और औलाद (इस ज़रा सी) दुनिया की ज़िन्दगी की ज़ीनत हैं और बाक़ी रहने वाली नेकियाँ तुम्हारे परवरदिगार के नज़दीक सवाब में उससे कही ज्यादा अच्छी हैं और तमन्नाएँ व आरजू की राह से (भी) बेहतर हैं - Suhel Khan and Saifur Nadwi (Hindi)

18:47 وَيَوْمَ نُسَيِّرُ ٱلْجِبَالَ وَتَرَى ٱلْأَرْضَ بَارِزَةً وَحَشَرْنَـٰهُمْ فَلَمْ نُغَادِرْ مِنْهُمْ أَحَدًا
18:47 और (उस दिन से डरो) जिस दिन हम पहाड़ों को चलाएँगें और तुम ज़मीन को खुला मैदान (पहाड़ों से) खाली देखोगे और हम इन सभी को इकट्ठा करेगे तो उनमें से एक को न छोड़ेगें - Suhel Khan and Saifur Nadwi (Hindi)

18:48 وَعُرِضُوا۟ عَلَىٰ رَبِّكَ صَفًّا لَّقَدْ جِئْتُمُونَا كَمَا خَلَقْنَـٰكُمْ أَوَّلَ مَرَّةٍۭ ۚ بَلْ زَعَمْتُمْ أَلَّن نَّجْعَلَ لَكُم مَّوْعِدًا
18:48 सबके सब तुम्हारे परवरदिगार के सामने कतार पे क़तार पेश किए जाएँगें और (उस वक्त हम याद दिलाएँगे कि जिस तरह हमने तुमको पहली बार पैदा किया था (उसी तरह) तुम लोगों को (आख़िर) हमारे पास आना पड़ा मगर तुम तो ये ख्याल करते थे कि हम तुम्हारे (दोबारा पैदा करने के) लिए कोई वक्त ही न ठहराएँगें - Suhel Khan and Saifur Nadwi (Hindi)

18:49 وَوُضِعَ ٱلْكِتَـٰبُ فَتَرَى ٱلْمُجْرِمِينَ مُشْفِقِينَ مِمَّا فِيهِ وَيَقُولُونَ يَـٰوَيْلَتَنَا مَالِ هَـٰذَا ٱلْكِتَـٰبِ لَا يُغَادِرُ صَغِيرَةً وَلَا كَبِيرَةً إِلَّآ أَحْصَىٰهَا ۚ وَوَجَدُوا۟ مَا عَمِلُوا۟ حَاضِرًا ۗ وَلَا يَظْلِمُ رَبُّكَ أَحَدًا
18:49 और लोगों के आमाल की किताब (सामने) रखी जाएँगी तो तुम गुनेहगारों को देखोगे कि जो कुछ उसमें (लिखा) है (देख देख कर) सहमे हुए हैं और कहते जाते हैं हाए हमारी यामत ये कैसी किताब है कि न छोटे ही गुनाह को बे क़लमबन्द किए छोड़ती है न बड़े गुनाह को और जो कुछ इन लोगों ने (दुनिया में) किया था वह सब (लिखा हुआ) मौजूद पाएँगें और तेरा परवरदिगार किसी पर (ज़र्रा बराबर) ज़ुल्म न करेगा - Suhel Khan and Saifur Nadwi (Hindi)

18:50 وَإِذْ قُلْنَا لِلْمَلَـٰٓئِكَةِ ٱسْجُدُوا۟ لِـَٔادَمَ فَسَجَدُوٓا۟ إِلَّآ إِبْلِيسَ كَانَ مِنَ ٱلْجِنِّ فَفَسَقَ عَنْ أَمْرِ رَبِّهِۦٓ ۗ أَفَتَتَّخِذُونَهُۥ وَذُرِّيَّتَهُۥٓ أَوْلِيَآءَ مِن دُونِى وَهُمْ لَكُمْ عَدُوٌّۢ ۚ بِئْسَ لِلظَّـٰلِمِينَ بَدَلًا
18:50 और (वह वक्त याद करो) जब हमने फ़रिश्तों को हुक्म दिया कि आदम को सजदा करो तो इबलीस के सिवा सबने सजदा किया (ये इबलीस) जिन्नात से था तो अपने परवरदिगार के हुक्म से निकल भागा तो (लोगों) क्या मुझे छोड़कर उसको और उसकी औलाद को अपना दोस्त बनाते हो हालॉकि वह तुम्हारा (क़दीमी) दुश्मन हैं ज़ालिमों (ने ख़ुदा के बदले शैतान को अपना दोस्त बनाया ये उन) का क्या बुरा ऐवज़ है - Suhel Khan and Saifur Nadwi (Hindi)

18:51 ۞ مَّآ أَشْهَدتُّهُمْ خَلْقَ ٱلسَّمَـٰوَٰتِ وَٱلْأَرْضِ وَلَا خَلْقَ أَنفُسِهِمْ وَمَا كُنتُ مُتَّخِذَ ٱلْمُضِلِّينَ عَضُدًا
18:51 मैने न तो आसमान व ज़मीन के पैदा करने के वक्त उनको (मदद के लिए) बुलाया था और न खुद उनके पैदा करने के वक्त अौर मै (ऐसा गया गुज़रा) न था कि मै गुमराह करने वालों को मददगार बनाता - Suhel Khan and Saifur Nadwi (Hindi)

18:52 وَيَوْمَ يَقُولُ نَادُوا۟ شُرَكَآءِىَ ٱلَّذِينَ زَعَمْتُمْ فَدَعَوْهُمْ فَلَمْ يَسْتَجِيبُوا۟ لَهُمْ وَجَعَلْنَا بَيْنَهُم مَّوْبِقًا
18:52 और (उस दिन से डरो) जिस दिन ख़ुदा फरमाएगा कि अब तुम जिन लोगों को मेरा शरीक़ ख्याल करते थे उनको (मदद के लिए) पुकारो तो वह लोग उनको पुकारेगें मगर वह लोग उनकी कुछ न सुनेगें और हम उन दोनों के बीच में महलक (खतरनाक) आड़ बना देंगे - Suhel Khan and Saifur Nadwi (Hindi)

18:53 وَرَءَا ٱلْمُجْرِمُونَ ٱلنَّارَ فَظَنُّوٓا۟ أَنَّهُم مُّوَاقِعُوهَا وَلَمْ يَجِدُوا۟ عَنْهَا مَصْرِفًا
18:53 और गुनेहगार लोग (देखकर समझ जाएँगें कि ये इसमें सोके जाएँगे और उससे गरीज़ (बचने की) की राह न पाएँगें - Suhel Khan and Saifur Nadwi (Hindi)

18:54 وَلَقَدْ صَرَّفْنَا فِى هَـٰذَا ٱلْقُرْءَانِ لِلنَّاسِ مِن كُلِّ مَثَلٍ ۚ وَكَانَ ٱلْإِنسَـٰنُ أَكْثَرَ شَىْءٍ جَدَلًا
18:54 और हमने तो इस क़ुरान में लोगों (के समझाने) के वास्ते हर तरह की मिसालें फेर बदल कर बयान कर दी है मगर इन्सान तो तमाम मख़लूक़ात से ज्यादा झगड़ालू है - Suhel Khan and Saifur Nadwi (Hindi)

18:55 وَمَا مَنَعَ ٱلنَّاسَ أَن يُؤْمِنُوٓا۟ إِذْ جَآءَهُمُ ٱلْهُدَىٰ وَيَسْتَغْفِرُوا۟ رَبَّهُمْ إِلَّآ أَن تَأْتِيَهُمْ سُنَّةُ ٱلْأَوَّلِينَ أَوْ يَأْتِيَهُمُ ٱلْعَذَابُ قُبُلًا
18:55 और जब लोगों के पास हिदायत आ चुकी तो (फिर) उनको ईमान लाने और अपने परवरदिगार से मग़फिरत की दुआ माँगने से (उसके सिवा और कौन) अम्र मायने है कि अगलों की सी रीत रस्म उनको भी पेश आई या हमारा अज़ाब उनके सामने से (मौजूद) हो - Suhel Khan and Saifur Nadwi (Hindi)

18:56 وَمَا نُرْسِلُ ٱلْمُرْسَلِينَ إِلَّا مُبَشِّرِينَ وَمُنذِرِينَ ۚ وَيُجَـٰدِلُ ٱلَّذِينَ كَفَرُوا۟ بِٱلْبَـٰطِلِ لِيُدْحِضُوا۟ بِهِ ٱلْحَقَّ ۖ وَٱتَّخَذُوٓا۟ ءَايَـٰتِى وَمَآ أُنذِرُوا۟ هُزُوًا
18:56 और हम तो पैग़म्बरों को सिर्फ इसलिए भेजते हैं कि (अच्छों को निजात की) खुशख़बरी सुनाएंऔर (बदों को अज़ाब से) डराएंऔर जो लोग काफिर हैं झूटी झूटी बातों का सहारा पकड़ के झगड़ा करते है ताकि उसकी बदौलत हक़ को (उसकी जगह से उखाड़ फेकें और उन लोगों ने मेरी आयतों को जिस (अज़ाब से) ये लोग डराए गए हॅसी ठ्ठ्ठा (मज़ाक) बना रखा है - Suhel Khan and Saifur Nadwi (Hindi)

18:57 وَمَنْ أَظْلَمُ مِمَّن ذُكِّرَ بِـَٔايَـٰتِ رَبِّهِۦ فَأَعْرَضَ عَنْهَا وَنَسِىَ مَا قَدَّمَتْ يَدَاهُ ۚ إِنَّا جَعَلْنَا عَلَىٰ قُلُوبِهِمْ أَكِنَّةً أَن يَفْقَهُوهُ وَفِىٓ ءَاذَانِهِمْ وَقْرًا ۖ وَإِن تَدْعُهُمْ إِلَى ٱلْهُدَىٰ فَلَن يَهْتَدُوٓا۟ إِذًا أَبَدًا
18:57 और उससे बढ़कर और कौन ज़ालिम होगा जिसको ख़ुदा की आयतें याद दिलाई जाए और वह उनसे रद गिरदानी (मुँह फेर ले) करे और अपने पहले करतूतों को जो उसके हाथों ने किए हैं भूल बैठे (गोया) हमने खुद उनके दिलों पर परदे डाल दिए हैं कि वह (हक़ बात को) न समझ सकें और (गोया) उनके कानों में गिरानी पैदा कर दी है कि (सुन न सकें) और अगर तुम उनको राहे रास्त की तरफ़ बुलाओ भी तो ये हरगिज़ कभी रुबरु होने वाले नहीं हैं - Suhel Khan and Saifur Nadwi (Hindi)

18:58 وَرَبُّكَ ٱلْغَفُورُ ذُو ٱلرَّحْمَةِ ۖ لَوْ يُؤَاخِذُهُم بِمَا كَسَبُوا۟ لَعَجَّلَ لَهُمُ ٱلْعَذَابَ ۚ بَل لَّهُم مَّوْعِدٌ لَّن يَجِدُوا۟ مِن دُونِهِۦ مَوْئِلًا
18:58 और (ऐ रसूल) तुम्हारा परवरदिगार तो बड़ा बख्शने वाला मेहरबान है अगर उनकी करतूतों की सज़ा में धर पकड़ करता तो फौरन (दुनिया ही में) उन पर अज़ाब नाज़िल कर देता मगर उनके लिए तो एक मियाद (मुक़र्रर) है जिससे खुदा के सिवा कहीें पनाह की जगह न पाएंगें - Suhel Khan and Saifur Nadwi (Hindi)

18:59 وَتِلْكَ ٱلْقُرَىٰٓ أَهْلَكْنَـٰهُمْ لَمَّا ظَلَمُوا۟ وَجَعَلْنَا لِمَهْلِكِهِم مَّوْعِدًا
18:59 और ये बस्तियाँ (जिन्हें तुम अपनी ऑंखों से देखते हो) जब उन लोगों ने सरकशी तो हमने उन्हें हलाक कर मारा और हमने उनकी हलाकत की मियाद मुक़र्रर कर दी थी - Suhel Khan and Saifur Nadwi (Hindi)

18:60 وَإِذْ قَالَ مُوسَىٰ لِفَتَىٰهُ لَآ أَبْرَحُ حَتَّىٰٓ أَبْلُغَ مَجْمَعَ ٱلْبَحْرَيْنِ أَوْ أَمْضِىَ حُقُبًا
18:60 (ऐ रसूल) वह वाक़या याद करो जब मूसा खिज़्र की मुलाक़ात को चले तो अपने जवान वसी यूशा से बोले कि जब तक में दोनों दरियाओं के मिलने की जगह न पहुँच जाऊँ (चलने से) बाज़ न आऊँगा - Suhel Khan and Saifur Nadwi (Hindi)

18:61 فَلَمَّا بَلَغَا مَجْمَعَ بَيْنِهِمَا نَسِيَا حُوتَهُمَا فَٱتَّخَذَ سَبِيلَهُۥ فِى ٱلْبَحْرِ سَرَبًا
18:61 ख्वाह (अगर मुलाक़ात न हो तो) बरसों यूँ ही चलता जाऊँगा फिर जब ये दोनों उन दोनों दरियाओं के मिलने की जगह पहुँचे तो अपनी (भुनी हुई) मछली छोड़ चले तो उसने दरिया में सुरंग बनाकर अपनी राह ली - Suhel Khan and Saifur Nadwi (Hindi)

18:62 فَلَمَّا جَاوَزَا قَالَ لِفَتَىٰهُ ءَاتِنَا غَدَآءَنَا لَقَدْ لَقِينَا مِن سَفَرِنَا هَـٰذَا نَصَبًا
18:62 फिर जब कुछ और आगे बढ़ गए तो मूसा ने अपने जवान (वसी) से कहा (अजी हमारा नाश्ता तो हमें दे दो हमारे (आज के) इस सफर से तो हमको बड़ी थकन हो गई - Suhel Khan and Saifur Nadwi (Hindi)

18:63 قَالَ أَرَءَيْتَ إِذْ أَوَيْنَآ إِلَى ٱلصَّخْرَةِ فَإِنِّى نَسِيتُ ٱلْحُوتَ وَمَآ أَنسَىٰنِيهُ إِلَّا ٱلشَّيْطَـٰنُ أَنْ أَذْكُرَهُۥ ۚ وَٱتَّخَذَ سَبِيلَهُۥ فِى ٱلْبَحْرِ عَجَبًا
18:63 (यूशा ने) कहा क्या आप ने देखा भी कि जब हम लोग (दरिया के किनारे) उस पत्थर के पास ठहरे तो मै (उसी जगह) मछली छोड़ आया और मुझे आप से उसका ज़िक्र करना शैतान ने भुला दिया और मछली ने अजीब तरह से दरिया में अपनी राह ली - Suhel Khan and Saifur Nadwi (Hindi)

18:64 قَالَ ذَٰلِكَ مَا كُنَّا نَبْغِ ۚ فَٱرْتَدَّا عَلَىٰٓ ءَاثَارِهِمَا قَصَصًا
18:64 मूसा ने कहा वही तो वह (जगह) है जिसकी हम जुस्तजू (तलाश) में थे फिर दोनों अपने क़दम के निशानों पर देखते देखते उलटे पॉव फिरे - Suhel Khan and Saifur Nadwi (Hindi)

18:65 فَوَجَدَا عَبْدًا مِّنْ عِبَادِنَآ ءَاتَيْنَـٰهُ رَحْمَةً مِّنْ عِندِنَا وَعَلَّمْنَـٰهُ مِن لَّدُنَّا عِلْمًا
18:65 तो (जहाँ मछली थी) दोनों ने हमारे बन्दों में से एक (ख़ास) बन्दा खिज्र को पाया जिसको हमने अपनी बारगाह से रहमत (विलायत) का हिस्सा अता किया था - Suhel Khan and Saifur Nadwi (Hindi)

18:66 قَالَ لَهُۥ مُوسَىٰ هَلْ أَتَّبِعُكَ عَلَىٰٓ أَن تُعَلِّمَنِ مِمَّا عُلِّمْتَ رُشْدًا
18:66 और हमने उसे इल्म लदुन्नी (अपने ख़ास इल्म) में से कुछ सिखाया था मूसा ने उन (ख़िज्र) से कहा क्या (आपकी इजाज़त है कि) मै इस ग़रज़ से आपके साथ साथ रहूँ - Suhel Khan and Saifur Nadwi (Hindi)

18:67 قَالَ إِنَّكَ لَن تَسْتَطِيعَ مَعِىَ صَبْرًا
18:67 कि जो रहनुमाई का इल्म आपको है (ख़ुदा की तरफ से) सिखाया गया है उसमें से कुछ मुझे भी सिखा दीजिए खिज्र ने कहा (मै सिखा दूँगा मगर) आपसे मेरे साथ सब्र न हो सकेगा - Suhel Khan and Saifur Nadwi (Hindi)

18:68 وَكَيْفَ تَصْبِرُ عَلَىٰ مَا لَمْ تُحِطْ بِهِۦ خُبْرًا
18:68 और (सच तो ये है) जो चीज़ आपके इल्मी अहाते से बाहर हो - Suhel Khan and Saifur Nadwi (Hindi)

18:69 قَالَ سَتَجِدُنِىٓ إِن شَآءَ ٱللَّهُ صَابِرًا وَلَآ أَعْصِى لَكَ أَمْرًا
18:69 उस पर आप सब्र क्योंकर कर सकते हैं मूसा ने कहा (आप इत्मिनान रखिए) अगर ख़ुदा ने चाहा तो आप मुझे साबिर आदमी पाएँगें - Suhel Khan and Saifur Nadwi (Hindi)

18:70 قَالَ فَإِنِ ٱتَّبَعْتَنِى فَلَا تَسْـَٔلْنِى عَن شَىْءٍ حَتَّىٰٓ أُحْدِثَ لَكَ مِنْهُ ذِكْرًا
18:70 और मै आपके किसी हुक्म की नाफरमानी न करुँगा खिज्र ने कहा अच्छा तो अगर आप को मेरे साथ रहना है तो जब तक मै खुद आपसे किसी बात का ज़िक्र न छेडँ - Suhel Khan and Saifur Nadwi (Hindi)

18:71 فَٱنطَلَقَا حَتَّىٰٓ إِذَا رَكِبَا فِى ٱلسَّفِينَةِ خَرَقَهَا ۖ قَالَ أَخَرَقْتَهَا لِتُغْرِقَ أَهْلَهَا لَقَدْ جِئْتَ شَيْـًٔا إِمْرًا
18:71 आप मुझसे किसी चीज़ के बारे में न पूछियेगा ग़रज़ ये दोनो (मिलकर) चल खड़े हुए यहाँ तक कि (एक दरिया में) जब दोनों कश्ती में सवार हुए तो ख़िज्र ने कश्ती में छेद कर दिया मूसा ने कहा (आप ने तो ग़ज़ब कर दिया) क्या कश्ती में इस ग़रज़ से सुराख़ किया है - Suhel Khan and Saifur Nadwi (Hindi)

18:72 قَالَ أَلَمْ أَقُلْ إِنَّكَ لَن تَسْتَطِيعَ مَعِىَ صَبْرًا
18:72 कि लोगों को डुबा दीजिए ये तो आप ने बड़ी अजीब बात की है-ख़िज्र ने कहा क्या मैने आप से (पहले ही) न कह दिया था - Suhel Khan and Saifur Nadwi (Hindi)

18:73 قَالَ لَا تُؤَاخِذْنِى بِمَا نَسِيتُ وَلَا تُرْهِقْنِى مِنْ أَمْرِى عُسْرًا
18:73 कि आप मेरे साथ हरगिज़ सब्र न कर सकेगे-मूसा ने कहा अच्छा जो हुआ सो हुआ आप मेरी गिरफत न कीजिए और मुझ पर मेरे इस मामले में इतनी सख्ती न कीजिए - Suhel Khan and Saifur Nadwi (Hindi)

18:74 فَٱنطَلَقَا حَتَّىٰٓ إِذَا لَقِيَا غُلَـٰمًا فَقَتَلَهُۥ قَالَ أَقَتَلْتَ نَفْسًا زَكِيَّةًۢ بِغَيْرِ نَفْسٍ لَّقَدْ جِئْتَ شَيْـًٔا نُّكْرًا
18:74 (ख़ैर ये तो हो गया) फिर दोनों के दोनों आगे चले यहाँ तक कि दोनों एक लड़के से मिले तो उस बन्दे ख़ुदा ने उसे जान से मार डाला मूसा ने कहा (ऐ माज़ अल्लाह) क्या आपने एक मासूम शख़्श को मार डाला और वह भी किसी के (ख़ौफ के) बदले में नहीं आपने तो यक़ीनी एक अजीब हरकत की - Suhel Khan and Saifur Nadwi (Hindi)

18:75 ۞ قَالَ أَلَمْ أَقُل لَّكَ إِنَّكَ لَن تَسْتَطِيعَ مَعِىَ صَبْرًا
18:75 खिज्र ने कहा कि मैंने आपसे (मुक़र्रर) न कह दिया था कि आप मेरे साथ हरगिज़ नहीं सब्र कर सकेगें - Suhel Khan and Saifur Nadwi (Hindi)

18:76 قَالَ إِن سَأَلْتُكَ عَن شَىْءٍۭ بَعْدَهَا فَلَا تُصَـٰحِبْنِى ۖ قَدْ بَلَغْتَ مِن لَّدُنِّى عُذْرًا
18:76 मूसा ने कहा (ख़ैर जो हुआ वह हुआ) अब अगर मैं आप से किसी चीज़ के बारे में पूछगछ करूँगा तो आप मुझे अपने साथ न रखियेगा बेशक आप मेरी तरफ से माज़रत (की हद को) पहुँच गए - Suhel Khan and Saifur Nadwi (Hindi)

18:77 فَٱنطَلَقَا حَتَّىٰٓ إِذَآ أَتَيَآ أَهْلَ قَرْيَةٍ ٱسْتَطْعَمَآ أَهْلَهَا فَأَبَوْا۟ أَن يُضَيِّفُوهُمَا فَوَجَدَا فِيهَا جِدَارًا يُرِيدُ أَن يَنقَضَّ فَأَقَامَهُۥ ۖ قَالَ لَوْ شِئْتَ لَتَّخَذْتَ عَلَيْهِ أَجْرًا
18:77 ग़रज़ (ये सब हो हुआ कर फिर) दोनों आगे चले यहाँ तक कि जब एक गाँव वालों के पास पहुँचे तो वहाँ के लोगों से कुछ खाने को माँगा तो उन लोगों ने दोनों को मेहमान बनाने से इन्कार कर दिया फिर उन दोनों ने उसी गाँव में एक दीवार को देखा कि गिरा ही चाहती थी तो खिज्र ने उसे सीधा खड़ा कर दिया उस पर मूसा ने कहा अगर आप चाहते तो (इन लोगों से) इसकी मज़दूरी ले सकते थे - Suhel Khan and Saifur Nadwi (Hindi)

18:78 قَالَ هَـٰذَا فِرَاقُ بَيْنِى وَبَيْنِكَ ۚ سَأُنَبِّئُكَ بِتَأْوِيلِ مَا لَمْ تَسْتَطِع عَّلَيْهِ صَبْرًا
18:78 (ताकि खाने का सहारा होता) खिज्र ने कहा मेरे और आपके दरमियान छुट्टम छुट्टा अब जिन बातों पर आप से सब्र न हो सका मैं अभी आप को उनकी असल हक़ीकत बताए देता हूँ - Suhel Khan and Saifur Nadwi (Hindi)

18:79 أَمَّا ٱلسَّفِينَةُ فَكَانَتْ لِمَسَـٰكِينَ يَعْمَلُونَ فِى ٱلْبَحْرِ فَأَرَدتُّ أَنْ أَعِيبَهَا وَكَانَ وَرَآءَهُم مَّلِكٌ يَأْخُذُ كُلَّ سَفِينَةٍ غَصْبًا
18:79 (लीजिए सुनिये) वह कश्ती (जिसमें मैंने सुराख़ कर दिया था) तो चन्द ग़रीबों की थी जो दरिया में मेहनत करके गुज़ारा करते थे मैंने चाहा कि उसे ऐबदार बना दूँ (क्योंकि) उनके पीछे-पीछे एक (ज़ालिम) बादशाह (आता) था कि तमाम कश्तियां ज़बरदस्ती बेगार में पकड़ लेता था - Suhel Khan and Saifur Nadwi (Hindi)

18:80 وَأَمَّا ٱلْغُلَـٰمُ فَكَانَ أَبَوَاهُ مُؤْمِنَيْنِ فَخَشِينَآ أَن يُرْهِقَهُمَا طُغْيَـٰنًا وَكُفْرًا
18:80 और वह जो लड़का जिसको मैंने मार डाला तो उसके माँ बाप दोनों (सच्चे) ईमानदार हैं तो मुझको ये अन्देशा हुआ कि (ऐसा न हो कि बड़ा होकर) उनको भी अपने सरकशी और कुफ़्र में फँसा दे - Suhel Khan and Saifur Nadwi (Hindi)

18:81 فَأَرَدْنَآ أَن يُبْدِلَهُمَا رَبُّهُمَا خَيْرًا مِّنْهُ زَكَوٰةً وَأَقْرَبَ رُحْمًا
18:81 तो हमने चाहा कि (हम उसको मार डाले और) उनका परवरदिगार इसके बदले में ऐसा फरज़न्द अता फरमाए जो उससे पाक नफ़सी और पाक कराबत में बेहतर हो - Suhel Khan and Saifur Nadwi (Hindi)

18:82 وَأَمَّا ٱلْجِدَارُ فَكَانَ لِغُلَـٰمَيْنِ يَتِيمَيْنِ فِى ٱلْمَدِينَةِ وَكَانَ تَحْتَهُۥ كَنزٌ لَّهُمَا وَكَانَ أَبُوهُمَا صَـٰلِحًا فَأَرَادَ رَبُّكَ أَن يَبْلُغَآ أَشُدَّهُمَا وَيَسْتَخْرِجَا كَنزَهُمَا رَحْمَةً مِّن رَّبِّكَ ۚ وَمَا فَعَلْتُهُۥ عَنْ أَمْرِى ۚ ذَٰلِكَ تَأْوِيلُ مَا لَمْ تَسْطِع عَّلَيْهِ صَبْرًا
18:82 और वह जो दीवार थी (जिसे मैंने खड़ा कर दिया) तो वह शहर के दो यतीम लड़कों की थी और उसके नीचे उन्हीं दोनों लड़कों का ख़ज़ाना (गड़ा हुआ था) और उन लड़कों का बाप एक नेक आदमी था तो तुम्हारे परवरदिगार ने चाहा कि दोनों लड़के अपनी जवानी को पहुँचे तो तुम्हारे परवरदिगार की मेहरबानी से अपना ख़ज़ाने निकाल ले और मैंने (जो कुछ किया) कुछ अपने एख्तियार से नहीं किया (बल्कि खुदा के हुक्म से) ये हक़ीक़त है उन वाक़यात की जिन पर आपसे सब्र न हो सका - Suhel Khan and Saifur Nadwi (Hindi)

18:83 وَيَسْـَٔلُونَكَ عَن ذِى ٱلْقَرْنَيْنِ ۖ قُلْ سَأَتْلُوا۟ عَلَيْكُم مِّنْهُ ذِكْرًا
18:83 और (ऐ रसूल) तुमसे लोग ज़ुलक़रनैन का हाल (इम्तेहान) पूछा करते हैं तुम उनके जवाब में कह दो कि मैं भी तुम्हें उसका कुछ हाल बता देता हूँ - Suhel Khan and Saifur Nadwi (Hindi)

18:84 إِنَّا مَكَّنَّا لَهُۥ فِى ٱلْأَرْضِ وَءَاتَيْنَـٰهُ مِن كُلِّ شَىْءٍ سَبَبًا
18:84 (ख़ुदा फरमाता है कि) बेशक हमने उनको ज़मीन पर कुदरतें हुकूमत अता की थी और हमने उसे हर चीज़ के साज़ व सामान दे रखे थे - Suhel Khan and Saifur Nadwi (Hindi)

18:85 فَأَتْبَعَ سَبَبًا
18:85 वह एक सामान (सफर के) पीछे पड़ा - Suhel Khan and Saifur Nadwi (Hindi)

18:86 حَتَّىٰٓ إِذَا بَلَغَ مَغْرِبَ ٱلشَّمْسِ وَجَدَهَا تَغْرُبُ فِى عَيْنٍ حَمِئَةٍ وَوَجَدَ عِندَهَا قَوْمًا ۗ قُلْنَا يَـٰذَا ٱلْقَرْنَيْنِ إِمَّآ أَن تُعَذِّبَ وَإِمَّآ أَن تَتَّخِذَ فِيهِمْ حُسْنًا
18:86 यहाँ तक कि जब (चलते-चलते) आफताब के ग़ुरूब होने की जगह पहुँचा तो आफताब उनको ऐसा दिखाई दिया कि (गोया) वह काली कीचड़ के चश्में में डूब रहा है और उसी चश्में के क़रीब एक क़ौम को भी आबाद पाया हमने कहा ऐ जुलकरनैन (तुमको एख्तियार है) ख्वाह इनके कुफ्र की वजह से इनकी सज़ा करो (कि ईमान लाए) या इनके साथ हुस्ने सुलूक का शेवा एख्तियार करो (कि खुद ईमान क़ुबूल करें) - Suhel Khan and Saifur Nadwi (Hindi)

18:87 قَالَ أَمَّا مَن ظَلَمَ فَسَوْفَ نُعَذِّبُهُۥ ثُمَّ يُرَدُّ إِلَىٰ رَبِّهِۦ فَيُعَذِّبُهُۥ عَذَابًا نُّكْرًا
18:87 जुलकरनैन ने अर्ज़ की जो शख्स सरकशी करेगा तो हम उसकी फौरन सज़ा कर देगें (आख़िर) फिर वह (क़यामत में) अपने परवरदिगार के सामने लौटाकर लाया ही जाएगा और वह बुरी से बुरी सज़ा देगा - Suhel Khan and Saifur Nadwi (Hindi)

18:88 وَأَمَّا مَنْ ءَامَنَ وَعَمِلَ صَـٰلِحًا فَلَهُۥ جَزَآءً ٱلْحُسْنَىٰ ۖ وَسَنَقُولُ لَهُۥ مِنْ أَمْرِنَا يُسْرًا
18:88 और जो शख्स ईमान कुबूल करेगा और अच्छे काम करेगा तो (वैसा ही) उसके लिए अच्छे से अच्छा बदला है और हम बहुत जल्द उसे अपने कामों में से आसान काम (करने) को कहेंगे - Suhel Khan and Saifur Nadwi (Hindi)

18:89 ثُمَّ أَتْبَعَ سَبَبًا
18:89 फिर उस ने एक दूसरी राह एख्तियार की - Suhel Khan and Saifur Nadwi (Hindi)

18:90 حَتَّىٰٓ إِذَا بَلَغَ مَطْلِعَ ٱلشَّمْسِ وَجَدَهَا تَطْلُعُ عَلَىٰ قَوْمٍ لَّمْ نَجْعَل لَّهُم مِّن دُونِهَا سِتْرًا
18:90 यहाँ तक कि जब चलते-चलते आफताब के तूलूउ होने की जगह पहुँचा तो (आफताब) से ऐसा ही दिखाई दिया (गोया) कुछ लोगों के सर पर उस तरह तुलूउ कर रहा है जिन के लिए हमने आफताब के सामने कोई आड़ नहीं बनाया था - Suhel Khan and Saifur Nadwi (Hindi)

18:91 كَذَٰلِكَ وَقَدْ أَحَطْنَا بِمَا لَدَيْهِ خُبْرًا
18:91 और था भी ऐसा ही और जुलक़रनैन के पास वो कुछ भी था हमको उससे पूरी वाकफ़ियत थी - Suhel Khan and Saifur Nadwi (Hindi)

18:92 ثُمَّ أَتْبَعَ سَبَبًا
18:92 (ग़रज़) उसने फिर एक और राह एख्तियार की - Suhel Khan and Saifur Nadwi (Hindi)

18:93 حَتَّىٰٓ إِذَا بَلَغَ بَيْنَ ٱلسَّدَّيْنِ وَجَدَ مِن دُونِهِمَا قَوْمًا لَّا يَكَادُونَ يَفْقَهُونَ قَوْلًا
18:93 यहाँ तक कि जब चलते-चलते रोम में एक पहाड़ के (कंगुरों के) दीवारों के बीचो बीच पहुँच गया तो उन दोनों दीवारों के इस तरफ एक क़ौम को (आबाद) पाया तो बात चीत कुछ समझ ही नहीं सकती थी - Suhel Khan and Saifur Nadwi (Hindi)

18:94 قَالُوا۟ يَـٰذَا ٱلْقَرْنَيْنِ إِنَّ يَأْجُوجَ وَمَأْجُوجَ مُفْسِدُونَ فِى ٱلْأَرْضِ فَهَلْ نَجْعَلُ لَكَ خَرْجًا عَلَىٰٓ أَن تَجْعَلَ بَيْنَنَا وَبَيْنَهُمْ سَدًّا
18:94 उन लोगों ने मुतरज्जिम के ज़रिए से अर्ज़ की ऐ ज़ुलकरनैन (इसी घाटी के उधर याजूज माजूज की क़ौम है जो) मुल्क में फ़साद फैलाया करते हैं तो अगर आप की इजाज़त हो तो हम लोग इस ग़र्ज़ से आपसे पास चन्दा जमा करें कि आप हमारे और उनके दरमियान कोई दीवार बना दें - Suhel Khan and Saifur Nadwi (Hindi)

18:95 قَالَ مَا مَكَّنِّى فِيهِ رَبِّى خَيْرٌ فَأَعِينُونِى بِقُوَّةٍ أَجْعَلْ بَيْنَكُمْ وَبَيْنَهُمْ رَدْمًا
18:95 जुलकरनैन ने कहा कि मेरे परवरदिगार ने ख़र्च की जो कुदरत मुझे दे रखी है वह (तुम्हारे चन्दे से) कहीं बेहतर है (माल की ज़रूरत नहीं) तुम फक़त मुझे क़ूवत से मदद दो तो मैं तुम्हारे और उनके दरमियान एक रोक बना दूँ - Suhel Khan and Saifur Nadwi (Hindi)

18:96 ءَاتُونِى زُبَرَ ٱلْحَدِيدِ ۖ حَتَّىٰٓ إِذَا سَاوَىٰ بَيْنَ ٱلصَّدَفَيْنِ قَالَ ٱنفُخُوا۟ ۖ حَتَّىٰٓ إِذَا جَعَلَهُۥ نَارًا قَالَ ءَاتُونِىٓ أُفْرِغْ عَلَيْهِ قِطْرًا
18:96 (अच्छा तो) मुझे (कहीं से) लोहे की सिले ला दो (चुनान्चे वह लोग) लाए और एक बड़ी दीवार बनाई यहाँ तक कि जब दोनो कंगूरो के दरमेयान (दीवार) को बुलन्द करके उनको बराबर कर दिया तो उनको हुक्म दिया कि इसके गिर्द आग लगाकर धौको यहां तक उसको (धौंकते-धौंकते) लाल अंगारा बना दिया - Suhel Khan and Saifur Nadwi (Hindi)

18:97 فَمَا ٱسْطَـٰعُوٓا۟ أَن يَظْهَرُوهُ وَمَا ٱسْتَطَـٰعُوا۟ لَهُۥ نَقْبًا
18:97 तो कहा कि अब हमको ताँबा दो कि इसको पिघलाकर इस दीवार पर उँडेल दें (ग़रज़) वह ऐसी ऊँची मज़बूत दीवार बनी कि न तो याजूज व माजूज उस पर चढ़ ही सकते थे और न उसमें नक़ब लगा सकते थे - Suhel Khan and Saifur Nadwi (Hindi)

18:98 قَالَ هَـٰذَا رَحْمَةٌ مِّن رَّبِّى ۖ فَإِذَا جَآءَ وَعْدُ رَبِّى جَعَلَهُۥ دَكَّآءَ ۖ وَكَانَ وَعْدُ رَبِّى حَقًّا
18:98 जुलक़रनैन ने (दीवार को देखकर) कहा ये मेरे परवरदिगार की मेहरबानी है मगर जब मेरे परवरदिगार का वायदा (क़यामत) आयेगा तो इसे ढहा कर हमवार कर देगा और मेरे परवरदिगार का वायदा सच्चा है - Suhel Khan and Saifur Nadwi (Hindi)

18:99 ۞ وَتَرَكْنَا بَعْضَهُمْ يَوْمَئِذٍ يَمُوجُ فِى بَعْضٍ ۖ وَنُفِخَ فِى ٱلصُّورِ فَجَمَعْنَـٰهُمْ جَمْعًا
18:99 और हम उस दिन (उन्हें उनकी हालत पर) छोड़ देंगे कि एक दूसरे में (टकरा के दरिया की) लहरों की तरह गुड़मुड़ हो जाएँ और सूर फूँका जाएगा तो हम सब को इकट्ठा करेंगे - Suhel Khan and Saifur Nadwi (Hindi)

18:100 وَعَرَضْنَا جَهَنَّمَ يَوْمَئِذٍ لِّلْكَـٰفِرِينَ عَرْضًا
18:100 और उसी दिन जहन्नुम को उन काफिरों के सामने खुल्लम खुल्ला पेश करेंगे - Suhel Khan and Saifur Nadwi (Hindi)

18:101 ٱلَّذِينَ كَانَتْ أَعْيُنُهُمْ فِى غِطَآءٍ عَن ذِكْرِى وَكَانُوا۟ لَا يَسْتَطِيعُونَ سَمْعًا
18:101 और उसी (रसूल की दुश्मनी की सच्ची बात) कुछ भी सुन ही न सकते थे - Suhel Khan and Saifur Nadwi (Hindi)

18:102 أَفَحَسِبَ ٱلَّذِينَ كَفَرُوٓا۟ أَن يَتَّخِذُوا۟ عِبَادِى مِن دُونِىٓ أَوْلِيَآءَ ۚ إِنَّآ أَعْتَدْنَا جَهَنَّمَ لِلْكَـٰفِرِينَ نُزُلًا
18:102 तो क्या जिन लोगों ने कुफ्र एख्तियार किया इस ख्याल में हैं कि हमको छोड़कर हमारे बन्दों को अपना सरपरस्त बना लें (कुछ पूछगछ न होगी) (अच्छा सुनो) हमने काफिरों की मेहमानदारी के लिए जहन्नुम तैयार कर रखी है - Suhel Khan and Saifur Nadwi (Hindi)

18:103 قُلْ هَلْ نُنَبِّئُكُم بِٱلْأَخْسَرِينَ أَعْمَـٰلًا
18:103 (ऐ रसूल) तुम कह दो कि क्या हम उन लोगों का पता बता दें जो लोग आमाल की हैसियत से बहुत घाटे में हैं - Suhel Khan and Saifur Nadwi (Hindi)

18:104 ٱلَّذِينَ ضَلَّ سَعْيُهُمْ فِى ٱلْحَيَوٰةِ ٱلدُّنْيَا وَهُمْ يَحْسَبُونَ أَنَّهُمْ يُحْسِنُونَ صُنْعًا
18:104 (ये) वह लोग (हैं) जिन की दुनियावी ज़िन्दगी की राई (कोशिश सब) अकारत हो गई और वह उस ख़ाम ख्याल में हैं कि वह यक़ीनन अच्छे-अच्छे काम कर रहे हैं - Suhel Khan and Saifur Nadwi (Hindi)

18:105 أُو۟لَـٰٓئِكَ ٱلَّذِينَ كَفَرُوا۟ بِـَٔايَـٰتِ رَبِّهِمْ وَلِقَآئِهِۦ فَحَبِطَتْ أَعْمَـٰلُهُمْ فَلَا نُقِيمُ لَهُمْ يَوْمَ ٱلْقِيَـٰمَةِ وَزْنًا
18:105 यही वह लोग हैं जिन्होंने अपने परवरदिगार की आयातों से और (क़यामत के दिन) उसके सामने हाज़िर होने से इन्कार किया तो उनका सब किया कराया अकारत हुआ तो हम उसके लिए क़यामत के दिन मीजान हिसाब भी क़ायम न करेंगे - Suhel Khan and Saifur Nadwi (Hindi)

18:106 ذَٰلِكَ جَزَآؤُهُمْ جَهَنَّمُ بِمَا كَفَرُوا۟ وَٱتَّخَذُوٓا۟ ءَايَـٰتِى وَرُسُلِى هُزُوًا
18:106 (और सीधे जहन्नुम में झोंक देगें) ये जहन्नुम उनकी करतूतों का बदला है कि उन्होंने कुफ्र एख्तियार किया और मेरी आयतों और मेरे रसूलों को हँसी ठठ्ठा बना लिया - Suhel Khan and Saifur Nadwi (Hindi)

18:107 إِنَّ ٱلَّذِينَ ءَامَنُوا۟ وَعَمِلُوا۟ ٱلصَّـٰلِحَـٰتِ كَانَتْ لَهُمْ جَنَّـٰتُ ٱلْفِرْدَوْسِ نُزُلًا
18:107 बेशक जिन लोगों ने ईमान क़ुबूल किया और अच्छे-अच्छे काम किये उनकी मेहमानदारी के लिए फिरदौस (बरी) के बाग़ात होंगे जिनमें वह हमेशा रहेंगे - Suhel Khan and Saifur Nadwi (Hindi)

18:108 خَـٰلِدِينَ فِيهَا لَا يَبْغُونَ عَنْهَا حِوَلًا
18:108 और वहाँ से हिलने की भी ख्वाहिश न करेंगे - Suhel Khan and Saifur Nadwi (Hindi)

18:109 قُل لَّوْ كَانَ ٱلْبَحْرُ مِدَادًا لِّكَلِمَـٰتِ رَبِّى لَنَفِدَ ٱلْبَحْرُ قَبْلَ أَن تَنفَدَ كَلِمَـٰتُ رَبِّى وَلَوْ جِئْنَا بِمِثْلِهِۦ مَدَدًا
18:109 (ऐ रसूल उन लोगों से) कहो कि अगर मेरे परवरदिगार की बातों के (लिखने के) वास्ते समन्दर (का पानी) भी सियाही बन जाए तो क़ब्ल उसके कि मेरे परवरदिगार की बातें ख़त्म हों समन्दर ही ख़त्म हो जाएगा अगरचे हम वैसा ही एक समन्दर उस की मदद को लाँए - Suhel Khan and Saifur Nadwi (Hindi)

18:110 قُلْ إِنَّمَآ أَنَا۠ بَشَرٌ مِّثْلُكُمْ يُوحَىٰٓ إِلَىَّ أَنَّمَآ إِلَـٰهُكُمْ إِلَـٰهٌ وَٰحِدٌ ۖ فَمَن كَانَ يَرْجُوا۟ لِقَآءَ رَبِّهِۦ فَلْيَعْمَلْ عَمَلًا صَـٰلِحًا وَلَا يُشْرِكْ بِعِبَادَةِ رَبِّهِۦٓ أَحَدًۢا
18:110 (ऐ रसूल) कह दो कि मैं भी तुम्हारा ही ऐसा एक आदमी हूँ (फर्क़ इतना है) कि मेरे पास ये वही आई है कि तुम्हारे माबूद यकता माबूद हैं तो वो शख्स आरज़ूमन्द होकर अपने परवरदिगार के सामने हाज़िर होगा तो उसे अच्छे काम करने चाहिए और अपने परवरदिगार की इबादत में किसी को शरीक न करें - Suhel Khan and Saifur Nadwi (Hindi)