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Suhel Khan and Saifur Nadwi

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35 Fāţir فَاطِر

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بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَٰنِ الرَّحِيمِ
In the name of Allah, Most Gracious, Most Merciful.

35:18 وَلَا تَزِرُ وَازِرَةٌ وِزْرَ أُخْرَىٰ ۚ وَإِن تَدْعُ مُثْقَلَةٌ إِلَىٰ حِمْلِهَا لَا يُحْمَلْ مِنْهُ شَىْءٌ وَلَوْ كَانَ ذَا قُرْبَىٰٓ ۗ إِنَّمَا تُنذِرُ ٱلَّذِينَ يَخْشَوْنَ رَبَّهُم بِٱلْغَيْبِ وَأَقَامُوا۟ ٱلصَّلَوٰةَ ۚ وَمَن تَزَكَّىٰ فَإِنَّمَا يَتَزَكَّىٰ لِنَفْسِهِۦ ۚ وَإِلَى ٱللَّهِ ٱلْمَصِيرُ
35:18 और याद रहे कि कोई शख्स किसी दूसरे (के गुनाह) का बोझ नहीं उठाएगा और अगर कोई (अपने गुनाहों का) भारी बोझ उठाने वाला अपना बोझ उठाने के वास्ते (किसी को) बुलाएगा तो उसके बारे में से कुछ भी उठाया न जाएगा अगरचे (कोई किसी का) कराबतदार ही (क्यों न) हो (ऐ रसूल) तुम तो बस उन्हीं लोगों को डरा सकते हो जो बे देखे भाले अपने परवरदिगार का ख़ौफ रखते हैं और पाबन्दी से नमाज़ पढ़ते हैं और (याद रखो कि) जो शख्स पाक साफ रहता है वह अपने ही फ़ायदे के वास्ते पाक साफ रहता है और (आख़िरकार सबको हिरफिर के) खुदा ही की तरफ जाना है - Suhel Khan and Saifur Nadwi (Hindi)