Selected

Original Text
Suhel Khan and Saifur Nadwi

Available Translations

6 Al-'An`ām ٱلْأَنْعَام

< Previous   165 Āyah   The Cattle      Next >  

بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَٰنِ الرَّحِيمِ
In the name of Allah, Most Gracious, Most Merciful.

6:122 أَوَمَن كَانَ مَيْتًا فَأَحْيَيْنَـٰهُ وَجَعَلْنَا لَهُۥ نُورًا يَمْشِى بِهِۦ فِى ٱلنَّاسِ كَمَن مَّثَلُهُۥ فِى ٱلظُّلُمَـٰتِ لَيْسَ بِخَارِجٍ مِّنْهَا ۚ كَذَٰلِكَ زُيِّنَ لِلْكَـٰفِرِينَ مَا كَانُوا۟ يَعْمَلُونَ
6:122 क्या जो शख़्श (पहले) मुर्दा था फिर हमने उसको ज़िन्दा किया और उसके लिए एक नूर बनाया जिसके ज़रिए वह लोगों में (बेतकल्लुफ़) चलता फिरता है उस शख़्श का सामना हो सकता है जिसकी ये हालत है कि (हर तरफ से) अंधेरे में (फँसा हुआ है) कि वहाँ से किसी तरह निकल नहीं सकता (जिस तरह मोमिनों के वास्ते ईमान आरास्ता किया गया) उसी तरह काफिरों के वास्ते उनके आमाल (बद) आरास्ता कर दिए गए हैं - Suhel Khan and Saifur Nadwi (Hindi)